हरड़ और उसके सौ उपयोग भाग - ५

मस्तिष्क दुर्बलता :-

  • २ तोला बड़ी हरड़ की छाल और ५ तोला धनिया को बारीक़ पीस कर चूर्ण बनाकर चूर्ण के बराबर शक्कर मिलाकर रख लें. प्रातः सायं ६-६ माशे चूर्ण जल के साथ लेने से मस्तिष्क दुर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति बढ़ती है. कब्ज दूर होकर आलस्य व सुस्ती मिटती हैऔर सार दिन चित प्रसन्न रहता है


नेत्र रोग

नेत्र शूल :-

  • हरड़ पानी में घिस कर नेत्रों के ऊपर लेप करने से वात, पित्त, कफ टोनी दोषों के प्रकोप से आई हुई आँख की पीड़ा दूर होती है
  • हरड़ की छाल, सेंधा नमक, सोनोगेरू को रसौत के पानी में पीस कर नेत्रों के ऊपर लेप करने से नेत्रों की पीड़ा खुजली, लाली, सुजन आदि समस्त नेत्र-विकार दूर होते है
  • बड़ी हरड़, हल्दी, अफीम पानी में घिस कर नेत्रों के ऊपर लेप करने से इत्रों की पीड़ा मिटती है
  • हरड़, बहेड़ा और आंवलासार गंधक एकत्र पानी में भिगो दें. दो घंटे बाद इनको पानी से निकाल कर उस पानी को आखों में डालने से आखों की पीड़ा, सुजन और लाली दूर होती है
  • त्रिफला, पोस्ट जे डोडे का कल्क बनाकर बांधने से सब प्रकार की नेत्र पीड़ा दूर होती है


नेत्रस्त्राव (ढलका) :- 

  • हरड़, बहेड़ा. आंवला तीनो के बीजों की मींग को जल में पीस कर बत्ती बनाये. इस बत्ती को जल में घिस कर नेत्रों में आंजने से नेत्रों से पानी बहना तथा वातरक्त सम्बन्धी पीड़ा दूर होती है
  • पिली हरड़ की गुठली की राख, माजूफलऔर सेंधा नमक तीनो समान भाग महीन पीस कर रख लें. प्रातः सायं सलाई द्वारा आंजने से नेत्रस्त्राव बंद होता है

सर्वनेत्र रोग :-

  • हरड़, सेंधा नमक, गेरू, रसौत चारों समभाग ले जल में पीस कर नेत्रों के ऊपर लेप करने से सब नेत्र रोग नष्ट होते है
  • हरड़, बहेड़ा, आंवला, गिलोय इन चारों का काढ़ा बनाकर उसमे पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से समस्त नेत्र रोग दूर होते है
  • हरड़, रसौत, बेल के पते पीस कर लेप करने से सब नेत्र रोग नष्ट होते है


नेत्र दुख भंजन रसायन :- 

  • त्रिफला का चूर्ण ६ माशे, घी २ तोला और शहद १ तोला, तीनो को मिलाकर रात को चाटने से हर प्रकार का नेत्र विकार दूर होकर नेत्र ज्योति बढती है
  • बड़ी हरड़ २ तोला, आंवला ४ तोला, मिश्री ८ तोला, मुलेठी, बंशलोचन, छोटी पीपल ८-८ माशे, लोह भस्म १ तोला, को कूटपीस छान कर रख लें, ३ से ६ माशे की मात्रा में प्रातः सायं इस रसायन का सेवन करने से नेत्रों की लाली, खुजली, पानी बहना, तिमिर, फूला, अर्वुद, नेत्रदाह, मोतिया-बिन्द, नत्रों की दुर्बलता दुरत होकर नेत्र ज्योति बढ़ती है. दुर्बल दृष्टि वाले विधार्थियों या अधिक पढ़ने लिखने का कार्य करने वालो के लिए यह योग बहुत ही लाभप्रद है

कर्ण स्त्राव (कान बहना) :-
  • छोटी हरड़, अजवायन, सौंफ, मेथी के बीज और काला नमक १-१ तोला सबको कूट पीस छान कर चूर्ण बनाकर रख लें. १ से ३ माशे चूर्ण गरम जल के साथ प्रातः सायं कुछ दिन सेवन करने से कान का बहना निश्चित रूप से बंद हो जायेगा. औषधि सेवन काल में स्नान करना और दही खाना निषेध है


मुख तथा कंठ रोग

मुखापाक :-
  • त्रिफला क्वाथ में शहद डालकर गण्डूप (कवल) धारण करने से मुख और जीभ के छाले में आराम मिलता है

कंठरोग :- 
  • हरड़ की छाल का क्वाथ शहद के साथ पीने से गले का दर्द, टांसिल वृद्धि आदि सब कंठ रोग दूर होते है
  • हरड़ की छाल, नीम की छाल, दारु हल्दी, इंद्र जौ, तज का क्वाथ, शहद डालकर पीने से सब कंठ रोग दूर होते है

स्वरभंग (गला बैठना) :- 
  • हरड़ और सौंठ का चूर्ण गर्म पानी के साथ खाने से स्वरभंग दूर होता है
  • हरड़ की छाल, वच और पीपल का चूर्ण गरम जल के साथ सेवान करने से मेद और क्षय रोग का स्वरभंग ठीक होता है
  • हरड़ की छाल, बच, ब्राह्मी, आडूसा और पिपली समभाग का चूर्ण ६ माशे शहद के साथ चाटने से बैठी हुई आवाज खुलती है

अपची :-
  • हरड़ का बक्कल, लाल चन्दन, लाख, वच और कुटकी को पानी में पीस कर लुगदी बनाकर तेल में पकाकर उस तेल को लगाने से अपची रोग नष्ट होता होता है
  • हरड़ का बक्कल, नीम की पत्तियां, सरसों और भिलावें समभाग जलाकर राख को बकरे के मूत्र में सान कर लगाने से अपची का घाव अच्छा हो जाता है

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