हरड़ और उसके सौ उपयोग भाग - ६

दन्त रोग

चलदंत (दांत हिलना) :- 

  • भद्र मुस्तादि गुटिका - हरड़ की छाल, त्रिकुट, नागर मोथा, वायविडंग और नीम के पत्तों का चूर्ण गोमूत्र में सान कर गोली बनाकर छाया में सुखा लो. सोते समय एक गोली मुख में रखने से हिलते हुए दांत सुदृढ़ हो जाते है

दन्त रोग नाशक मंजन :-

  • हरड़ की छाल, सेंधा नमक, त्रिकुट और मोचरस के चूर्ण का मंजन करने से दांतों की पीड़ा दूर होकर दांत सुदृढ़ होते है
  • बड़ी हरड़ का कोयला १ तोला, हीरा कसीस और नमक ३-३ माशे, कालीमिर्च २ माशे सबको बारीक़ पीस कर दांतों पर मलने से मैले दांत साफ़ होकर चमकने लगते है और मुख की दुर्गन्ध दूर होती है
  • हरड़, सौंठ, नागरमोथा, जली सुपारी, काली मिर्च, लौंग, डाल चीनी १-१ तोला, सेलखेड़ी १० तोला, सबको कूट-पीस छानकर १ तोला कपूर और आधा तोला पिपरमेंट पीस कर मिला कर रख लें. सुबह-शाम दांतों और मसूढ़ों पर मलकर कुला करने से दांतों का हिलना, कीड़े लगना, दन्तशूल आदि दूर होकर दांत स्वच्छ हो जाते है और पायरिया रोग दूर हो जाता है


वात रोग

आमवात :-

  • हरड़ की छाल, सेंधा नमक, निशोथ, इंद्रायण फल की बीजी, इन्द्रायण की जड़ और सौंठ का चूर्ण जल के साथ लोहे के पात्र में डाल कर मंदाग्नि में पकाओ. गाढ़ा होने पर जंगली बेर बराबर गोलियां बनाकर रख लो. नित्य १ गोली गरम जल के साथ खिला कर ऊपर से घृत युक्त चावलों का भात खिलाने से आमावत से दही, दूध, गुड़, उड़द मांस-मछली वर्जित है
  • हरड़ १२ भाग, सेंधा नमक २ भाग, अजवायन २ भाग, अजमोद ३ भाग, सौंठ ४ भाग सबका बारीक़ चूर्ण बनाकर दही के पानी या कांजी या मट्ठा या घी अथवा गरम जल के साथ पीने से आमावत, गुल्म, ह्रदय की पीड़ा, मूत्राशय की पीड़ा, प्लीहा, ग्रंथि-शुलादी, बवासीर, आफरा, मलबंध, उदर रोग, कटि०-पीड़ा तथा मूत्राशय के रोग नाश होते है यह वैश्वानर चूर्ण वायु को योग्य मार्ग में संचार कराने वाला है

आमवात, भंगंदर, शोथ, अर्श :- 

  • हरड़, बेहरा, आंवला चूर्ण १-१ सेर, गूगुल २ सेर, सरसों का तेल १ सेर, सबको २४ सेर जल के साथ चूल्हे पर चढ़ा कर पकाओ, कुछ गाढ़ा होने पर पारागंधक की कज्जली ४ टंक, सोंठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला, नागरमोथा, देवदारु २-२ टंक और १०० शुद्ध जमाल गोटे, इन सबका चूर्ण उस क्वाथ में डालकर सुरक्षित रख लो. नित्य १ माशे की मात्रा में गर्म जल के साथ सेवन करने से आमवात, वात रोग, भगंदर, शोथशूल. अर्श ये सब रोग दूर होकर, सुधा बढ़ती है तथा वीर्य-वृधि होती है

आमवात, ग्रध्रसी, अर्दित :-

  • हरड़ की छाल का चूर्ण ६ माशे रेड़ी के तेल के साथ सेवन करने से आमावत और गृध्रसी रोग (टांग की एक विशेष प्रकार की पीड़ा), व अर्दित नष्ट होते है

अपतन्त्र :-

  • हरड़ का बक्कल, वच, रास्ना, सेंधा नमक, अमलवेत सब समभाग का चूर्ण ६ माशे की मात्रा में घी या अदरख के साथ सेवन करने से अपतंत्र दूर होता है 
वातरक्त :-
  • हरड़ का चूर्ण ६ माशे तक या जल के साथ सेवन करने से कफाधिक्य वातरक्त नष्ट होता है
  • बड़ी हरड़ का चूर्ण गुड़ के साथ लेने से वातरक्त दूर होता है
  • त्रिफला. पटोल पत्र, कुटकी. गिलोय, शतावर सबका जौकुट चूर्ण ढाई तोले आधा सेर पानी में पकाकर चतुर्थांश क्वाथ बनाकर पीने से दाहयुक्त वातरक्त आराम होता है
  • किशोर गुग्गुल - शुद् भैंसा गुग्गुल, हरड़ छाल, बेहरा छाल, आंवला, प्रत्येक १-१ सेर, गिलोय १६ तोला, इन सबका चूर्ण ६४ सेर पानी में पकाओ. आधा जल रह जाने पर छान लो. फिर कड़ाही में डालकर पकाओ. कुछ गाढ़ा हो जाने पर पारागंधक की कज्जली २ तोला, वायवीडिंग १ तोला का चूर्ण उक्त क्वाथ में डाल दो और भली-भांति मिला दो. नित्य ४ से ८ माशे की मात्रा में यह औषधि खाकर ऊपर से मंजिष्ठादि क्वाथ पीने से वातरक्त, श्वाश, गुल्म, कुष्ठ, शोथ, ब्रण, उदर रोग, पांडु, प्रमेह, मंदाग्निआदि समस्त व्याधियां दूर होती है. इस गुग्गुल के सेवन काल में आग तापना, धूप में घूमना, श्रम करना, मार्ग चलना, मैथुन, खटाई, मांस, दही, नमक, तेल का सेवन अहितकर है
गृध्रसी :-

  • हरड़ छाल, सुरंजान शीरी, इंद्रायण का गुदा, सनाय, शुद्ध एलवा १-१ तोला, गूगुल शुद्ध ६+ माशे और शुद्ध कुचला ४ माशे, सबको कूट छान गूगुल मिलाकर घीकुंवार के रस में घोट कर चने बराबर गोलियां बना लें. २-२ गोली गरम दूध या गरम जल के साथ सुबह-शाम लेने से गृघ्रसी में शीघ्र ही उत्तम लाभ होता है

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