हरड़ और उसके सौ उपयोग भाग - ११

विविध बाल रोग :-

  • बाल रोग क्वाथ - हरड़, अतीस, पीपल, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, मुनक्का, गिलोय, अदुसे के पते, कटेरी की जड़, प्रत्येक समभाग का जौकुट चूर्ण ३ माशे क्वाथ बनाकर प्रातः सायं पिलाने से बच्चे की जुकाम, खांसी ज्वर, अतिसार, उदर विकार सबी दूर होते है
  • हरड़ ४ भाग, आंवला, बहेड़ा २-२ भाग, अजवायन १६ भाग, सेंधा नमक १ भाग, सबको कूट-पीस जल के साथ १०-१२ घंटे खरल कार झड़बेरी बराबर गोली बनाकर छाया में सुखा कर रख लो. अनुपान भेद से बच्चों के प्र्त्येक रोग में गुणकारी है
  • छोटी हरड़, सौंठ, सौंफ, पीपल भुनी हींग, सब समभाग ले पकड़छान चूर्ण कर लें और स्वच्छ शीशी में रख लें. २ रत्ती से ६ रत्ती तक औषधि माँ के दूध या शहद के साथ देने से बालक का ज्वर, जुकाम, खांसी, बिगड़े दस्त, उदरशूल, उदरकृमि आदि सभी व्याधियों में उत्तम लाभ होता है यह बाल-पंचामृत, दीपन, पाचन और पौषक है

तालूकंटक :-

  • हरड़, वच, कूट को जल के साथ सिल पर पीसकर शहद में मिलाकर चावलों के जल के साथ पिलाने से बालक का तालकुंटक रोग नष्ट होता है

बालक के रुदन पर :-

  • यदि बच्चा बहुत रोता हो तो त्रिफला और पीपल का चूर्ण घी तथा शहद मिलाकर चाटना हितकारी है

स्मरण शक्ति वर्धक योग :-

  • हरड़. शतावर, सौंठ, शंखपुष्पी, वच, गिलोय, अपामार्ग, वायवीडिंग, सब समान भाग ले चूर्ण कर १ से ३ माशा चूर्ण घी में मिलाकर प्रातः सायं चटाकर ऊपर से मिश्री मिला दूध पिलाने से बालक की बुद्धि और स्मरण शक्ति निश्चित रूप से बढ़ जाती है

बाल सुधा काजल :-

  • बड़ी हरड़ का कोयला और जली हक्दी १०-१० ग्राम, कपूर ३ ग्राम, तीनो को कूट-पीस कपड़छान कर उसमें ६ ग्राम सफेदा (जिंक आक्साइड) मिलाकर कांसे के पात्र में रख कर इतना तिल तेल डालो कि वह गीला हो जाय. भली भांति रगड़ कर डिबियों में भर लों. यह काजल प्रातः सायं लगाने से बच्चे के समस्त नेत्र-रोग दूर होकर आंखें सुन्दर हो जाती है



रक्त-विकार और चर्म रोग

रक्त शोधक बटी :-

  • हरड़ का छिलका, पित्तपापड़ा, कूट, गिलोय, ब्राह्मी, अनंतमूल २-२ तोला ले जौकुट कर १ सेर पानी में पकाकर चतुर्थांश क्वाथ बनाकर छान लें. फिर उस क्वाथ में ढाई तोला शुद्ध रसौत डाल कर मंदाग्नि पर पकावें. गाढ़ा होने पर उतार कर उसमें शुद्ध आमलासार गंधक १ छ्टांग और सत्व गिलोय २ तोला डालकर इतना घोंटे की गोली बनाने योग्य हो जाय. फिर ३-३ रत्ती की बटीयां बनाकर रख लें. प्रातः सायं १-२ बटी नित्य ताजे पानी के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से दूषित रक्त शुद्ध हो जाता है. औषधि सेवन काल में अचार, खटाई, गुड़, लाल मिर्च, कड़ुवा तेल वर्जित है. घी, दूध, ताजे मौसमी फल और हरी साग-सब्जियां हितकर है

सफ़ेद दाग (श्वित्र) :-

  • हरड़, बहेड़ा, बावची, कैथ का गुदा, तीनो का क्वाथ बना नित्य सवेरे कुछ दिनों तक पीते रहने से श्वित्र के दाग दूर होते है
  • हरड़, बहेरा, आंवला, वायविडंग, बावची, पीपल, हरड़, बाराही कंद, कलिहारी की जड़, प्रत्येक समान भाग ले महीन चूर्ण करें. चूर्ण से दुगुना गुड़ लेकर उसकी चाशनी कर चूर्ण को मिलाकर मोदक बना लें. नित्य ६ माशे पाक सेवन करने से कुष्ट रोग नष्ट होता है
  • हरड़, बहेड़ा, आंवला, काला जीरा और हरताल का समभाग चूर्ण गोमूत्र में पीसकर लगाने से कुष्ट के दाग दूर होते है
  • हरड़ की छाल, करंज की जड़, सरसों, हल्दी, बावची, सेंधा नमक, नागरमोथा, सबको गोमूत्र में पीसकर लगाने से कुष्ट के दाग नष्ट होते है

विसर्प :-

  • त्रिफला, चिरायता, अडूसा, कुटकी, कड़ुवा परवल, लाल चन्दन, नीम की अंतर छाल, सबका जौकुट चूर्ण ढाई से तीन तोला, आध सेर पानी में पकाकार चतुर्थांश क्वाथ बनाकर पीने से विसर्प की दाह, ज्वर, सूजन, खुजली, विस्फोटक, तृषा, वमन आदि व्याधियां दूर होती है
  • त्रिफला, पद्माख, खस, लज्जावंती, कनेर, जवासा, सबको पानी में पीसकर लेप करने से विसर्प का विकार दूर होता है

श्लीपद (फीलपाँव) :-

  • रेड़ी के तेल में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण गोमूत्र के साथ पीने से एक-दो वर्ष पुराना श्लीपद रोग एक-दो सप्ताह में नष्ट हो जाता है
  • हरड़ २० तोला, पीपल १ तोला, चित्रक २ तोला, दंतीमूल ४ तोला, गुड़ ८ तोला, सबको कूट-पीसकर शहद में सानकर गोलियां बना लो. नित्य सुबह शाम १-१ गोली गोमूत्र या गरम जल के साथ लेने से श्लीपद में बहुत ही लाभ होता है

बद (फोड़ा) :-

  • हरड़ की छाल, पीपल, सेंधा नमक, सबको महीन पीसकर अंडी के तेल में पकाकर नित्य ६ माशे खाने से उठता हुआ फोड़ा बैठ जाता है
  • हरड़ के बक्कल को पानी में औटा कर व्रण पर सहने योग्य गरम जल धारा छोडने से हर प्रकार के व्रण की सुजन और पीड़ा दूर होती है
  • हरड़ की छाल, पीपल, खली (तिल, सरसों आदि तिलहनों का तेल निकाल लेने डे बाद का तेल रहित भाग), सहिंजन की छाल, नदी की बालू, सबको गोमूत्र में पीसकर गरम-गरम लेप करने से व्रण की पीड़ा और सूजन मिट जाती है
  • काली हरड़ और काली जीरी समान भाग,  जल में महीन पीस कर लगाने से पुराने से पुराना घाव भी शीघ्र ही भर जाता है
  • हिलएक या जम्बक मलहम - छोटी हरड़ का कपड़छन चूर्ण १० तोला रात के समय ४० तोला पानी में भिगो दें. प्रातः उसे पकाकर चौथाई क्वाथ बनाकर उतार लें, फिर उसमें २० तोला तिल तेल डालकार कलईदार बर्तन में मन्दाग्नि पर पकावें. पानी जल जाने पर छान लें और देशी मोम डालकर गर्म करें. मोम पिघल जाने पर असली चन्दन का तेल ५ तोला डालकर उतार लें और बोतल में भर लें. हीलएक या जम्बक जैसे रूप रंग का गुणकारी मलहम होगा. हर प्रकार के फोड़े के घाव पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है

नाड़ी व्रण (नासूर) :-

  • श्यामा घृत - त्रिफला, निशोथ, हल्दी, लोध के कल्क से पकाये हुए घी में दूध डालकर उस घी से नाड़ी व्रण को साफ करने से व्रण का स्त्राव निश्चित रूप से दूर हो जाता है
  • सप्तांग गुग्गुल - हरड़, बहेड़ा, आंवला, सौंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध गुग्गुल समभाग ले चूर्ण बनाकर घी में मिलाकर १-१ तोले की गोलियां बनालो. पथ्य से रहकर नित्य १-१ गोली खाने से नाड़ी-व्रण, दूषित व्रण, भगंदर, शूल, गुल्म, उदावर्त और सब प्रकार की बवासीर नष्ट हो जाती है. जिस प्रकार मोर सर्पों का शत्रु है, इसी प्रकार यह सप्तांग गुग्गुल उपरोक्त रोगों का शत्रु है
  • त्रिफला के क्वाथ में बिल्ली की हड्डी को पत्थर पर घिसकर उसमें बत्ती भिगोकर भरने से नाड़ी व्रण और भगंदर का व्रण शीघ्र ही अच्छा हो जाता है

मोच, शोथ आदि :-

  • छोटी हरड़ १ भाग, आंबा हल्दी, मैदा लकड़ी, रसौत १-१ भाग, फिटकरी, एलुवा आधा-आधा भाग, सबको इमामदस्ते में अलग-अलग कूट कर चूर्ण बना लें. इस सबके कपड़छन चूर्ण को पानी में मिलाकर सुपारी बराबर गोलियां बनाकर सुखाकर रख लो. चोट, मोच, टूटने की पीड़ा और सुजन हो या व्रण की शोथ, संधिवात, आमवात, कोष्टु शीर्षक आदि की सुजन हो, इन गोलियां को आवश्यकतानुसार जल में घिस कर आग पर थोड़ा गरम कर लेप करो, फिर अंगीठी या खप्पर में अंगारे लेकर आक्रांत स्थान में सेक करो. सेंक से लेप सूख जाएगा और उक्त स्थानों की सुजन और पीड़ा दूर होती है आँख उठने से यदि नेत्रों में लाली, शोथ और वेदना हो तो उसे मिटाने के लिए इस गोली का लेप नेत्र के चारों और पलकों को छोड़कर करना चाहिए. केवल दो बार ही लेप से लालिमा, शोथ और पीड़ा दूर हो जायगी.
  • भाग्नास्थि - त्रिफला, त्रिकुट, बबूल की फली समभाग सबके बराबर शुद्ध गुग्गुल ले एक में मिलाकर ३ से ६ माशे की मात्रा में गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से टूटी हुई हड्डी फिर जुड़ जाती है

खुजली :-

  • हरड़ की छाल, पवांर (चकबड़) के बीज, सेंधा नमक, दूब और बन तुलसी (बवई) के बीज मट्ठे या नींबू के रस में पीसकर लगाने से खुजली और दाद का विनाश होता है
  • बड़ी हरड़, आंवला, बहेड़ा, मजीठ, पीपल की लाख, मैनसिल, गंधक समभाग, सबको कूट कपड़छन कर सरसों के तेल में मिलाकर धुप में रख दें. धूप में बैठ कर इसकी मालिश करने से खुजली तीन दिन में ही चली जाती है

दाद :-

  • बड़ी हरड़ को सिरके में घिस कर लगाने से दाद नष्ट हो जाते है
  • हरड़, दूब, सेंधा नमक, पवांर (चकबड़) के बीज और बाकुची को कांजी, मट्ठे या नींबू के रस में पीसकर नित्य ३ बार लेप करने से दृढमूल वाले दाद और उकवत नष्ट हो जाते है

चेप्या रोग :-

  • वात पित्त के प्रकोप से नख के पास दाह उत्पन्न होकर मांस को पका देते है, उसे चिप्स या चेप्या रोग कहते है, हरड़ को हल्दी के रस के साथ लौह पात्र में पीसकर गरम करके लगाने से चेप्या रोग नष्ट हो जाता है

शरीर दुर्गन्धि :-

  • हरड़ के चूर्ण को उत्तम-मध या शहद के साथ चाटने से पसीना दूर होकर शरीर से अत्यंत सुगंध आने लगाती है
  • हरड़, कूट, पान, तीनो को चूर्ण कर जल में मिलाकर लेप करने से देह की दुर्गन्धि दूर होती है
  • हरड़ की छाल, खस, नागकेशर, सिरस की छाल, और लोध को पीसकर शरीर पर उबटन लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होकर शरीर से सुगंध आने लगती है

स्वेदाधिक्य :-

  • हरड़ पीसकर शरीर पर मल कर फिर स्नान करने से शरीर का पसीना बंद होता है
  • बड़ी हरड़ के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से पसीना दूर होकर देह से सुगंध आने लगती है
  • बबूल की पत्तियां भलीभांति पीसकर शरीर पर मले, फिर हरड़ पीसकर शरीर पर मलें, दोनों को मलने के बाद स्नान करने से पसीने की अधिकता तत्काल दूर हो जाती है
  • हरड़ का चूर्ण, चने का सत्तू, कुलथी का सत्तू, कूट, जटामांसी, सफ़ेद चन्दन का चूर्ण शरीर पर से अधिक पसीना आना व पसीने की दुर्गन्ध दूर होती है

कांतिवर्धक उबटन :-

  • हरड़ की छाल, लोध, नीम पत्र, अनार का बक्कल, आम की छाल, सबको जल के साथ सिल पर पीसकर शरीर और मुख पर उबटन मलने से शरीर का कुवर्ण दूर होकर शरीर की कांति और सुन्दरता बढ़ती तथा शरीर सुगन्धित हो जाता है


विविध रोग नाशक हरड़ के कुछ सरल योग

सगुड़ाभया :-

  • हरड़ के चूर्ण में समान भाग गुड़ मिलाकर तोला तोला भर की गोलियां बनावें, इन गोलियों के सेवन से पित्त, कफ, खुजली और कोख का दर्द दूर होता है बवासीर ने बहुत लाभदायक है
  • हरड़ को गुड़ के साथ १ तोला खाने से उदर रोग शोथ, पीनस, खांसी, अरुचि, जीर्ण ज्वर, अर्श, संग्रहणी, कफ रोग और वात रोग दूर होते है
  • हरड़ की छाल का चूर्ण गुड़ के साथ पीसकर ६ माशे से क्रमशः बढ़ाते-बढ़ाते एक से डेढ़ तोला तक बढ़ाकार एक मास तक खाने से शोथ, पीनस, कंठ रोग, श्वाश, कास, अरुचि, जीर्ण ज्वर, संग्रहणी और कफवात जन्य सब रोग दूर होते है

कफ, पित्त, मंदाग्नि :-

  • हरड़, पीपल, खांड समान भाग ले ३ से ६ माशे तक के मोदक बनाकर खाने से कफ, पित्त विकार और मंदाग्नि दूर होती है

पित्त ज्वर, खांसी, रक्तपित्त, विसर्प, श्वास, वमन

  • हरड़ के चूर्ण को तिल के तेल, घी और शहद के साथ अथवा केवल शहद के साथ चाटने से दाहयुक्त पित्त ज्वर, हर प्रकार की खांसी, ऊध्र्वेग-अधोग रक्त पित्त, विषम विसर्प, श्वास और विकट वमन में शीघ्र उत्तम लाभ होता है

जायफल-मद :-

  • अधिक जायफल के खाने का नशा और गर्मी हरड़ का चूर्ण जल के साथ लेने से दूर हो जाती है

पुराना जुकाम, मुत्रातिसार, रक्त विकार :-

  • हरड़ का चूर्ण, शुद्ध भिलावा, काले तिल और गुड़ प्रत्येक १-१ छ्टांग, सबको भलीभांति अलग-अलग कूट-पीसकर फिर एकत्र मिलाकर खूब घोटो. जब गोली बनाने योग्य हो जाए तो २५० मिली ग्राम की गोलियां बनाकर आधी गोली सायं खाना आरम्भ करें. ज्यों-ज्यों औषधि ख़त्म होती जाये, आधी-आधी गोली बढाते जाओ. ३-४ गोली से अधिक न लो, इस औषधि के सेवन से पुराना जुकाम, मुत्रातिसार, वायु व कफ के रोग, उपदंश, रक्त विकार और चर्म रोग दूर होते है, स्नायुक रोग (नारू) में भी लाभप्रद है. औषधि सेवान्काल में उचित पथ्य पालन करें.

टिप्पणियाँ