बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - १

बेल मात्र एक सुस्वाद खाद्य फल ही नहीं है, अपितु वह अनेकानेक रोगों की रामबाण औषधि भी है। भारत में जितना बेल दीर्धकाल से औषधि और भोजन रूप में व्यवहार में होता है, उतना आनी कोई अन्य फल नहीं। 

रोगों की बेल चिकित्सा

समान रूप से बना रहने वाला ज्वर - इस प्रकार के ज्वर में जब ज्वर का तापमान बहुत बढ़ा हुआ होता है तब बेल गिरी का चूर्ण ५ से ८ रत्ती की मात्रा में २४ घंटे में ४ से ६ बार देना चाहिए।

दस्त - इसमें बेलगिरी का चूर्ण १० से ३० रत्ती की मात्रा में चौथाई ग्रेन अफीम के साथ मिलाकर २४ घंटे में ४ से ६ बार देना चाहिए।

संग्रहणी - कच्चे या अधपके बेल की गिरी को जल के साथ उबाल कर और छान कर उसमें मधु मिलाकार सेवन करने से संग्रहणी में लाभ होता है। इस योग से वमन एवं दस्त में भी लाभ होता है।

हर प्रकार की दस्त की बीमारी - कच्चे बेल को आअग में भून लीजिये, फिर उसके गूदे में मिश्री या गुलाब का अर्क मिलाइए और प्रात:काल २ तोला की मात्रा से सेवन कीजिए, तो सब प्रकार के दस्त में लाभ हो। भुने कच्चे बेल का गुदा बिना मिश्री और गुलाब जल मिलायें भी वाही लाभ करता है। या सुखा बेलगिरी ५ तोला व सफ़ेद कत्था २ तोले के महीन चूर्ण में १० तोला मिश्री मिलाकर १० रत्ती की मात्रा में दिन में ५-६ बार सेवन करने से भी सब प्रकार के दस्तों में अच्छा लाभ होता है। अथवा १० सेर जल में २० तोला बेलगिरी डालकर पकावें। जब १ सेर जल शेष रहे तो छान लें। तत्पश्चात उसमें आध सेर के लगभग मिश्री मिला बोतल में भर रखें। मात्रा १ से २ तोला। प्रत्येक मात्रा में ४ रत्ती भुनी हुई सौंठ का चूर्ण और मुंग के दाने बराबर अफीम मिलाकर हर प्रकार के दस्त वाले रोगी को सेवन करावें, बहुत जल्द लाभ होगा।


आमातिसार - बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी, दोनों को समभाग लेकर पीसकर रख लें। इसे २ से ४ माशा की मात्रा से भात के मांड या ठंढे जल से साथ रोज प्रात:काल आमातिसार के रोगी को खिलावें तो आमातिसार रोग दूर हो। अथवा एक अधपके कच्चे बेल की जमीन पर पटक कर चिपका दें। फिर उसे भाड़ में भूनकर उसमें से ५ तोला गुदा निकाल लें और उसके साथ १ तोला सौंठ का चूर्ण तथा २ तोला गुड़ पीसें। फिर उसको ३ मात्रा में विभाजित कर सुबह, शाम, दोपहर १-१ मात्रा आमातिसार के रोगी को खिलावें और ऊपर से १० तोले मट्ठे में नमक व भूनी हुई हींग अंदाज़ से मिलाकर पिलावें। पथ्य दही और खिचड़ी, इस योग से भी आमातिसार में लाभ होता है। अथवा बेलगिरी और सौंठ प्रत्येक ढाई तोला, भुनी हुई अलसी का चूर्ण ५ तोला, और देशी शक्कर १० तोला लेकर सबको कूट-छान लें। ६ माशा की मात्रा तक यह चूर्ण आमातिसार के रोगी को ४-४ घंटे के अंतर से दिन में ४ बार सेवन कराकर ऊपर से १० तोले गाय के दूध के मट्ठे में १ तोला नमक मिलाकर पिलावें और पथ्य में दही-खिचड़ी दें।

हैजा - बेलगिरी और गिलोय ४-४ माशे लेकर और जौकुट कर १० तोला जल में काढ़ा बनावें। जब  चौथाई जल शेष बच रहे तो रोगी को उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलावें, लाभ होगा। अथवा रोग प्रबल हो और दस्त एवं कै अधिक होते हों तो उपयुक्त काढ़े को बनाने के पहले उसमें थोड़े-थोड़े परिणाम में जायफल, कपूर और छुहारा भी मिला दें तथा इस काढ़े को रोगी को बार-बार पिलावें।

भूख न लगना - बेलगिरी, छोटी पीपल, बस-लोचन, तथा मिश्री २-२ माशा लेकर प्रत्येक का चूर्ण कर लें और एक में मिला लें। फिर उसमें १ तोला अदरक का रस मिलाकर थोड़े जल में आग पर पकावें। जाब गाढ़ा हो जाय तो उतार लें और दिन में उसे ४ बार चटावें तप भूख खुले और पाचन-शक्ति बलवती हो। अथवा बेलगिरी के चूर्ण और अदरक को साथ-साथ पीसकर उसमें देशी खांड और इलायची का थोड़ा चूर्ण मिलाकर पका लें। जब गाढ़ा हो जाए तो उतार लें। इस अवलेह को भी बार-बार चटाने से रोगी को भूख लगने लगाती है।

गर्भवती का कै-दस्त - दो तोले बेलगिरी को चावल के मांड के साथ पीसकर और उसमें अंदाज से मिश्री मिलाकर रोगिणी को दिन में २-३ बार देने से लाभ होता है। साथ में चलने वाले ज्वर आदि उपद्रव भी इससे शांत हो जाते है।

बच्चो का दस्त - बेलगिरी को सौंफ के अर्क में मिलाकर देने से बच्चों के हरे, पीले, लाल दस्तों की शिकायत दूर हो जाती है।

दांत निकलते समय बच्चो के दस्त - बेलगिरी के एक तोले चूर्ण को १५ तोले जाल में पका कर दो तोला शेष रहने पर उसमें ६ माशा मधु मिला पिलावें।

खून के दस्त - (क) १ तोला बेलगिरी को १० तोले बकरी के दूध और २० तोले जल में मिलाकर पकावें। जब केवल दूध बच रहे तो छान कर और उसमें अंदाज से थोड़ी मिश्री मिलाकर रक्तातिसार के रोगी को सेवन करावें, लाभ होगा।

                    (ख) बेलगिरी १ भाग, सुखी धनिया १ भाग तथा मिश्री २ भाग। सबको चूर्ण कर एक में मिला लें और २ से ६ माशे तक की मात्रा से रक्तातिसार के रोगी को ताजे जल से प्रात:, सायं सेवन करावें तो भी लाभ होगा।

                    (ग) कच्चे बेल को कंडे की आग पर रख कर भुनें। जब ऊपर का छिलका बिलकुल काला हो जाय तो अलग करके रख लें। इस भुने बेल के गूदे की १ से २ तोले की मात्रा सुबह, शाम व दोपहर मिश्री मिला कर सेवन से भी रक्तातिसार ठीक हो जाता है।

रक्त के साथ पतला पानी जैसा मल - बेलगिरी के २-३ माशा चूर्ण को राब, शहद और तेल के साथ भोजन के पूर्व चाटने से इस प्रकार के रक्तातिसार में शीघ्र लाभ होता है।

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