बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - २

पुरानी संग्रहणी - बेल के बड़े-बड़े फलों को भाड़ में भूनकर उसके गूदे में थोड़ी खांड मिलाकर दिन-रात में जब-जब भूख लगे उसे ही खाया करें तथा प्यास लगने पर गाय का धारोंधारोष्ण दूध पीया करें। इनके अलावा कोई चीज खायें-पीयें नहीं। शीघ्र लाभ होगा।

प्यास की अधिकता व कै - पके बेल के गूदे को ठन्डे जल में मसल कर और छानकर उसमें छोटी इलायची, मिश्री और जरा सा कपूर मिलाकर पीने से दाह के कारण अधिक प्यास लगने तथा वमन में लाभ होता है। कब्ज के रोगी इस रोगी को भोजन के बाद लेवें। मंदाग्नि भी इससें प्रदीप्त होती है।

कब्ज - पके बेल के गूदे को इमली के पानक के साथ या दही के साथ थोड़ी खांड मिलाकर पीने से खुलासा दस्त होकर कब्ज दूर हो जाता है।



रक्ताल्पता - बेलगिरी के चूर्ण को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से रक्ताल्पता, रोगोपरांत की दुर्बलता तथा वीर्य की क्षीणता मिटती है।

दुर्बलता - पके बेल के गूदे को को सुखा कर और महीन चूर्ण बनाकर रख लें और प्रतिदिन इस चूर्ण को थोड़ी मात्रा में सेवन करें तो शरीर पुष्ट हो व दुर्बलता मिटे।

रक्त-विकार - बेल का ताजा गुदा या सूखे गूदे का चूर्ण ३ या ४ तोले लेकर उसमें समभाग देशी शक्कर मिलाकर रोज खाने से अशुद्ध रक्त शुद्ध हो जाता है।

बहुमूत्र - बेलगिरी १ तोला और सौंठ ६ माशा लेकर उन्हें जौकुट कार लें, फिर ४० तोले जल में डालकर उसका काढ़ा बनावें। जब सब का आठवाँ अंश बच रहे तो बहुमूत्र के रोगी को पिलावें। आशा है ७ दिनों में ही रोग पूर्णरूप से दूर हो जायेगा।

पुराना ज्वर - बेलगिरी और रेंडी की जड़ जौकुट कर १-१ तोला, गाय का दूध ४० तोला और जल दो सेर। सबको एक साथ मिलाकर पकावें। जाब केवल दूध शेष बच रहे तो उसे छान कर ज्वर के रोगी को सेवन करावें। इससे पुराने ज्वर में लाभ होता है।

शीतज्वर - केवल बेलगिरी के चूर्ण को जल के साथ सेवन करने से शीतज्वर शान्त होता है।

खुनी बवासीर - बेलगिरी के चूर्ण में बराबर की मिश्री मिलाकर ४ माशे की मात्रा तक ठन्डे जल के साथ सेवन करने से खुनी बवासीर अच्छी होती है। अथवा बेलगिरी, सौंफ और सौंठ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से भी खुनी बवासीर मिटती है।

प्रदर - बेलगिरी, नागकेसर और रसौत तीनो को बराबर-बराबर लेकर चूर्ण कर लें और ४ माशे की मात्रा तक प्रदर की रोगिणी को चावल के धोवन के साथ सेवन करावें तो रक्त प्रदर और श्वेत प्रदर दोनों ठीक हों।

सुजाक - ताजे बेल के गूदे को दूध के साथ पीस-छानकर औरे उसमें कबाव चीनी का थोड़ा चुरा मिलाकर सुजाक के रोगी को ३-३ घंटे के अंतर से पिलावें। पेशाब के परिणाम में वृद्धि होकर सुजाक में लाभ होगा।

कान के रोग - ५ तोले बेलगिरी को लेकर १५ तोले गोमूत्र में पीस लें। फिर उसमें आधा सेर तिल का तेल, २ सेर बाकरी का दूध तथा २ सेर जल मिलाकर मंद आँच पार पकावें। जब तेल मात्र शेष रहे तो छानकर बोतल में भर कर रख लें। इसे थोड़ा गुनगुना करके रोज सुबह-शाम ४-५ बूंदें कान में डालते रहे। इससे कान के लगभग सभी रोग जैसे बहरापन, कान का दर्द, कान का बहना आदि मिट ज़ाते है।

खांसी - बेलगिरी का चूर्ण ५ तोला, मिश्री का चूर्ण ५ तोला तथा बंसलोचन का चूर्ण १ तोला, सबको एक में मिलाकर रख लें और सुबह-दोपहर-शाम दिन में तीन बार इस मिश्रण को ३ माशे की मात्रा में शहद के साथ सेवन करें तो खांसी में लाभ हो। इस योग से साँस फूलने की शिकायत भी मिटती है।

संखिया का विष - यदि कोई संखिया-विष खा लें तो उसे तुरंत भरपेट पके बेल का गुदा खिला दीजिये, संखिया का विष बेअसर हो जायेगा।

काँखो की दुर्गन्ध - बहुत से लोगो को उनकी काँखो में पसीना मरने के कारण दुर्गन्ध आया करती है। ऐसे लोग यदि बेलगिरी और हरड़ का सम भाग लेकर जल के साथ पीस काँखों में लेप चढायें तो यह दोष दूर हो।

आग से जलना - बेल के गूदे को पीसकर और तिल के तेल मिलाकर १० दिन रख छोड़े। उसके बाद जब शरीर का कोई भाग आग से जल जाय तब उसे जले स्थान पर लगावें, तुरंत आराम मिलेगा।

सिर में जूं पड़ना - बेल कके पके फल के खोपड़े को साफ कर कटोरी जैसा बना लें। उसके बाद उस कटोरी में थोड़ा कपूर मिश्रित तिल का तेल भर कर भर ऊपर उसी कटोरी के दुसरे भाग को रख दें। तत्पश्चात उस तेल को सिर पर लगावें। ऐसा करने से सिर के साब जूं नष्ट हो जायेगी और बाल की जड़ निर्मल हो जायेगी।

मच्छर-मक्खी भगाएं - जिस जगह पर मच्छर-मक्खी आदि अधिक हों वहां बेल के छिलकों को जलाकर उनकी धुनी दें, मच्छर-मक्खी भाग जाएंगे।

शरीर में काँटा चुभना - शरीर में यदि कहीं कांटा चुभ जाय और उसे बाहर न निकाला जा सके तो उस स्थान पर बेलपत्र की पुल्टिस बांधिए, कांटा भीतर ही सड़-गल कर नष्ट हो जाएगा और कोई विकार भी नहीं होगा।

हैजा रोग से बचाव - यदि आसपास हैजे की बीमारी फैली हो तो उससे बचने के लिये उन दिनों रोज १० तोले बेल की पत्तियों का रस निकालकर उसमें थोड़ा नींबू का रस और देसी खांड मिला पी लिया करें, हैजा आपको न होगा।

मधुमेह - बेल के ताजे हरे पत्तों को पीसकर ५ तोला लुगदी बनावें। फिर उसमें ढाई तोला विशुद्ध मधु मिलाकर और कपड़े में रखकर उसका रस निचोड़ लें और मधुमेह के रोगी को पिला दें। ऐसा रोज २-३ बार करें, कुछ ही दिनों में रोग निर्मूल हो जायेगा और उसके कारण हुई फुंसियाँ आदी भी सूख जायंगी। केवल १ तोला बेलपत्र रस बिना मधु मिलाये सेवन करने से भी मधुमेह में लाभकारी सिद्ध होता है।

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