बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - ३

दाह - एक या दो तोला बेल की ताजी हरी पत्तियों को लेकर उन्हें २० तोले जल में ३ घंटे तक डुबो रखें। उसके बाद उस जल को २-२ घंटे के अंतर से २-२ तोला दाह के रोगी को पिलावें, शरीर की आंतरिक गर्मी शांत हो जायेगी।

मस्तिष्क की गर्मी - इस रोग में बेल की पत्तियों को पानी के साथ मोटा पीसकर माथे पार लेप करें, मस्तिष्क की गर्मी शांत होगी और नींद भी अच्छी आएगी।

अजीर्ण - बेल की पत्तियों के १ तोला रस में १ माशा कालीमिर्च व १ माशा सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर रोज सुबह, शाम व दोपहर सेवन से अजीर्ण में लाभ होता है।

सिरदर्द - बेल की पत्तियों के रस में कपड़े की पट्टी को तर करके सिर पर बार-बार रखने से सिर-दर्द आराम हो जाता है।

रक्तार्श - शनिवार के दिन बेल वृक्ष की २-४ टहनियों को तोड़ कर उस समय कमर में बांधे जब अर्श से खून गिर रहा हो, तत्काल खून गिरना बंद हो जायेगा और भविष में खून कभी नहीं गिरेगा और रोग निर्मूल हो जायगा।



यकृत पीड़ा - बेलपत्र के १ तोला रस में १ माशा सेंधा नमक मिलाकर दिन में ३ बार सुबह, दोपहर, शाम पिलाने से यकृत-पीड़ा में आराम मिलता है।

पेट-पीड़ा - बेलपत्र १ तोला और ७ नग कालीमिर्च एक साथ पीसकर १ तोले मिश्री के साथ शर्बत बनावें और उसे दिन में ३ बार सुबह, दोपहर, शाम पीवें तो पेट-पीड़ा में आराम मिलता है।

ह्रदय पीड़ा - बेलपत्र के १ तोला रस में आधा तोला गोघृत मिलाकर सेवन करने से ह्रदय पीड़ा में लाभ होता है।

पीलिया रोग - बेल के कोमल ताजे पत्तों के ढाई से ५ तोले रस में कालीमिर्च का १ माशा तक चूर्ण मिलायें और पीलिया-रोग के रोगी को सुबह-शाम पिलायें तो रोग मिटे। यदि रोगी को साथ-साथ सुजन भी हो तो बेलपत्र के रस को गरम करकर मलने से सूजन भी मिट जायगी।

जलोदर - बेल के ताजे पत्तों के ढाई से ५ तोले रस में छोटी पिपली का १ या डेढ़ माशा चूर्ण मिलाकर रोगी को सुबह-शाम पिलावें अवश्य लाभ होगा।

धातुक्षीणता - बेलपत्र के ३ माशे चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर रोज प्रात:सायं चाटने से धातु पुष्ट होती है।

नपुंसकता - बेल की १५ पत्तियों के साथ दो बादाम की मिंगीयाँ पीसकर छान लें। फिर उसमें दूध और मिश्री मिलाकर शर्बत बना लें और रोज सुबह-शाम पीवें। कुछ ही दिनों में नपुंसकता से फुर्सत मिल जायगी और कुछ ही दिनों में नपुंसकता से फुर्सत मिल जायगी और उसके कुछ ही दिनों में नपुंसकता से फुर्सत मिल जायगी।

स्वप्नदोष - बेलपत्र, धनियाँ और सौंफ को बराबर-बराबर वजन में लेकर कूट लें। १ या ३ तोला यह चूर्ण शाम को १० तोले पानी में भिगो दें। सुबह उठकर उसे मल-छान कर पी जावें। फिर उतना ही चूर्ण सुबह को भी १० तोले पानी में भिगो दें और उसी प्रकार मल-छान कर शाम को भी पीवें तो स्वप्नदोष दो-चार दिन में ही ठीक हो जाय। इस योग से प्रमेह एवं स्त्रियों के प्रदर में भी लाभ होता है।

कुकुरखांसी - धीमी आंच पर तवा रख उस पर बेल की पत्तियों को दाल भूनते-भूनते जला डालें, फिर उन जली पतियों को पीस-छान कार बोतल में रख लें और दिन में ३ बार सुबह-शाम और दोपहर १ या २ माशा की मात्रा में शहद के साथ रोगी को चटावें। कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुरखांसी आराम हो जायगी। इस योग से न केवल कुकुरखांसी ठीक हो जाती है, बल्कि हर प्रकार की खांसी व कास में लाभ होता है।

पेशाब का न होना - बेल के नरम-नरम ताजे पत्ते ६ माशा, सफ़ेद जीरा ३ माशा और मिश्री ६ माशा। सबको एक साथ पीसकर कल्क बना लें और खावें। ऊपर से जल पी लें। ऐसा ६-७ दिन करें। पेशाब न होने की तकलीफ, पेशाब में जलन होने की तकलीफ, पेशाब बूंद-बूंद होने की तकलीफ, तथा पेशाब के साथ वीर्य आने की तकलीफ सब ठीक हो जायेगी। रोगी को अवस्थानुसार मात्रा में कमी-बेसी कर लेना चाहिए।

विषम ज्वर - बेल की पत्तियों का काढ़ा बंनाये। जब काढ़ का आठवां भाग बचा रहे तो उसमें मधु डालकर विषमज्वर के रोगी को पिलावें, लाभ होगा। इस काढ़े से सततज्वर तथा टाइफाइड में भी लाभ होता है। जब ज्वर १०५ डिग्री से ऊपर चला जाय और रोगी अंडबंड बकने लगे तो बेल के ताजे हरे पत्तों की पुल्टिस बनाकर मष्तिष्क पर रखना चाहिए। इससे मष्तिष्क की गर्मी शांत होकर रोगी का प्रलाप बंद हो जायेगा।

प्लेग - उपर्युक्त विषमज्वर वाला काढ़ा पिलावें और प्लेग की गिल्टी पर बेलपत्रों को कुचलकर और उसको पुल्टिस बनाकर दिन में २-३ बार बांधे, प्लेग ठीक हो जायेगा और उसका विष दूर हो जाएगा।

छाती में कफ प्रकोप - उपरोक्त काढ़े के सेवन के साथ-साथ छाती पर बेल की पत्तियों की लुगदी गरम करके बांधने से कफ से भरी छाती का कफ दूर करने में सहायता मिलाती है।

छोटे बच्चों का कफयुक्त ज्वर - बच्चों की छाती में कफ जमा हो जाता है जिसकी वजह से उन्हें ज्वर भी रहता हो साथ ही कब्ज की भी शिकायत हो तो बील की नर्म-नर्म पत्तियों का रस निकालकर और उसमें शुद्ध माधु मिलाकर बार-बार चटावें, कफ छँटकर ज्वर में आराम मिलेगा।

ज्वारोन्माद - कभी-कभी ज्वर के रोगी का ज्वर बहुत अधिक तेज होकर उसकी गर्मी से उसका मष्तिष्क विकृत हो जाता है और वह पागलों की सी बातें करने लगता है। ऐसी हालत जब हो तो फ़ौरन रोगी के पूरे शरीर को बेल के ताजे हरे और ठन्डे पत्तों से ढक देना चाहिए। कई बार ऐसा करने से ज्वरोन्माद धीरे-धीरे शांत हो जाता है।

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