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हरड़ और उसके सौ उपयोग भाग - 02

हरड़ और उसके सौ उपयोग भाग - 02

हरड़ के सौ उपयोग भाग 02 (Hundred Uses of Myrobalan Part 02)

संग्रहणी : (DYSENTERY)

  • हरड़ और पीपल समान ले महीन चूर्ण बना लें, ४ माशे चूर्ण गुनगुने जल के साथ दिन में दप तीन वार लेने से संग्रहणी नष्ट होती है. भोजन के पश्चाद १ तोला कुटजारिष्ट और रात को सोते समय इसबगोल की भूसी हलके गरम दूध के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है
  • हरड़ का बक्कल, धनिया, सौंठ, बेल गिरी, सौंफ भुनी हुई, इसबगोल की भूसी प्रत्येक १००-१०० ग्राम लेकर सभी को कूट पीस एवं छान कर चूर्ण तैयार करें. ५-५ ग्राम की मात्रा में ताजे जल के साथ प्रातः दोपहर और शाम को लेने से आमातिसार और संग्रहणी में अवश्य लाब होता है चावल दही और कढ़ी तथा पपीते का शाक्य पथ्य है. रोटी, दूध, चाय और उष्ण पदार्थ ताज्य है.

हरितक्यादि पाक: (Haritkyadi Pak)
  • पहले दशमूल १२८ तोले और जौ ९६ तोले तथा पीपरामूल, भारंगी, शंखपुष्पी, खरेंटी, कचूर, सौंठ, अपामार्ग, नागरमोथा, पोह्करमूल और बड़ी पीपल ४-४ तोले आदी. इन सभी को जौकूट चूर्ण कर एक द्रोण (४०९६ तोले) जल में पकाये, उसी समय उसमें ६४ तोले हरड़ों की पोटली में बांध कर दल दें. आठवां भाग जल शेष रहने पर क्वाथ के पानी को छान लें तथा हरड़ों की गुठली निकाल कार उन्हें सिल पर पीस लें और २० तोले गो घृत में भून लें. पश्चाद उसमें उक्त छना हुआ क्वाथ और गुड़ १९२ तोले मिलाकर पकावें. जब चाशनी बन जाये तो निचे उतार कर उसमे जायफल, केशर, दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, आंवला, बेहड़ा, अजवायन, जावित्री, सौंठ, कालीमिर्च और पीपल १-१ तोले का महीन चूर्ण तथा लौहे भस्म और ताम्र भस्म १-१ तोले भलीभांति मिलाकर पाक जमा दें या मोदक बना लें. ६ माशे से १-२ तोले की मात्रा में प्रातः सायं सेवन करने सें संग्रहणी, जीर्णज्वर, अर्श, श्वाश, कास, वातरक्त, धातु क्षीणता, धातुस्त्राव आदि विकार नष्ट होते है. यह बलदायक और पौष्टिक पाक है
उदरकृमि: (Intestinal Worm)
  • हरड़ की छाल, वायविडंग, सेंधा नमक और जवाखार का चूर्ण ३ से ६ माशे की मात्रा में नित्य मट्ठे के साथ पिने से एक सप्ताह में उदरकृमि नष्ट हो जाते है

छर्दि (वमन): (Vomiting)
  • हरड़ का चूर्ण शहद के साथ चाटने से दोष गुदामार्ग में चले जाते है और वमन शीघ्र बंद होते है
  • त्रिफला और वायविडंग का चूर्ण शहद के साथ चाटने से वमन बंद होते है.

हिचकी: (Hiccup)
  • हरड़ का चूर्ण गर्म जल के साथ पीने से हिचकी बंद हो जाती है

अम्लपित: (Acidic)
  • हरड़ का चूर्ण मुनक्का के साथ खाने से अम्लपित अच्छा होता है
  • त्रिफला, परवल के पत्ते, नीम की छाल और गिलोय, प्रत्येक ६-६ माशे जौ कुट कर आधे सेर पानी में पकाकर चतुर्थांश क्वाथ बनाकर, क्वाथ को शीतल कर शहद मिलाकर पीने से अम्लपित नष्ट होता है
  • हरितक्यादि पाक - २ सेर गोदुग्ध मंदाग्नि से पकावे. आधा दूध शेष रहने पर उसमें ५० तोले खांड डालकर चाशनी सिद्ध कर उसमें हरड़ चूर्ण और निशोथ चूर्ण १६-१६ तोले तथा दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर, नागरमोथा, तालीसपत्र, जीरा, जावित्री, लौंग, लौह भस्म, अकिक भस्म और सुहागे की खील प्रत्येक १-१ तोले का महीन चूर्ण मिला कर पाक जमा दें या मोदक बना लें. १-२ तोले की मात्रा में इस पाक का सेवन करने से दुर्जय अम्लपित, अन्नद्रव शूल तथा अन्य सब प्रकार से शूल, कास, श्वाश और वमन न नाश होता है. यह पाक ह्रदय, बल्य, मेघा, अग्नि और कांति वर्धक है

आमाशयज व्रण (कैंसर): (Cancer)
  • छोटी हरड़ का चूर्ण १ माशा, शरपुंखा पंचांग चूर्ण १ माशा दोनों चूर्ण ६ माशा शुद्ध शहद में मिलाकर चाटने से और दशांग लेप १ तोला तथा छिलके रहित रेंडी के बीज १ तोला दूध में पीस कर गरम कर गाढ़ा-गाढ़ा लेप आमाशय पर आधा घंटा नित्य लगाने से आमाशय का व्रण ३ सप्ताह में ठीक हो जायेगा. भोजन में मिर्च मसाले और अम्ल पदार्थ सर्वथा ताज्य है.
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यकृत-विहार व प्लीहा वृद्धि: (Liver Disorders and Spleen Enlargement)
  • बड़ी हरड़, लाला रोहिड़ा दोनों का काढ़ा बना कर उसमें पीपल का चूर्ण व जवाखार मिला कर प्रातःकाल पीने से यकृत रोग, प्लीहा-वृदि और गुल्मोदर दूर होता है
  • पीपल, सौंठ, दन्ती समभाग, इन सब से दुगनी हरड़ की छाल का चूर्ण बना कर गुड़ के साथ खाने से प्लीहा-वृद्धि नष्ट होती है
  • हरड़ की छाल, शुद्ध भिलावा, जीरा सम भाग का चूर्ण कर सब के बराबर गुड़ मिला कर खाने से प्लीहा वृद्धि मिटती है
  • हरड़ की छाल, रोहिड़ा की जड़ और सौंठ का चूर्ण ६ माशे की मात्रा में गोमूत्र के साथ नित्य सेवन करने से प्लीहा, यकृत-विकार, अर्श, प्रमेह, कफ-विकार, कुष्ट और उदर विकार दूर होते है
  • बड़ी हरड़ की छाल और काला नमक या हरड़ छाल और पुराना गुड़ गरम जल के साथ लेने से प्लीहा वृदि नष्ट होती है
  • हरड़, पीपलामूल का चूर्ण लहसुन के साथ खाकर गोमूत्र पीने से प्लीहा वृद्धि दूर होती है
  • हरड़, शुद्ध भिलावा और जीरे का चूर्ण १-१ भाग लेकर महीन चूर्ण करें. फिर इस चूर्ण से छैगुना पुराना गुड़ लेकर चाशनी बनावें तथा चूर्ण को मिलाकर पाक जमा दें या मोदक बना लें. ३ माशे पाक प्रातः ताजे जल के साथ लेने से एक सप्ताह में अतिवृद्द प्लीहा नष्ट हो जाती है

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