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बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 4

बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 4

बेल और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 4

फोड़ा - बेल की ताजी हरी पत्तियों को लाकर उन्हें पीस लें। पीसते वक्त उनमें पानी नहीं मिलावें। पिसने के बाद उस लुगदी की टिकिया बनाकर फोड़े पर बांध दें, गहरे से गहरा फोड़ा भी बिना पके-फटे ठीक हो जाएगा। फोड़े पर टिकिया बांधने से पहले उसे थोड़ा गरम कर लेना अच्छा रहता है। फोड़ा जाब फुट जाय तो उसे बेलपत्रों को पानी में डालकर और पकाकर उसमें गरम-गरम पानी से धोना चाहिए। ततपश्चात बेलपत्रों की उपरोक्त टिकिया बांधनी चाहिए, घाव जल्दी भरेगा। यदि इन प्रयोगों के साथ-साथ रोज दिन में ३ बार सुबह, शाम व दोपहर ढाई तोला की मात्रा में बेलपत्रों का स्वरस रोगी को पिलाया भी जाय तो भयंकर से भयंकर जहरीले फोड़े एवं घाव जैसे मान्सार्बुद, कारबंकल तथा कैंसर आदि भी ठीक हो जाते है।

कंठमाला - इस रोग में बेल की कोमल ताजी पत्तियों को पीसकर तथा उसमें थोड़ा शुद्ध घी मिलाकर और गरम कार टिकिया बनायें और उसे कंठमाला की गिल्टियों पर दिन में दो बार बांधते रहे, अवश्य लाभ होगा।

चोट - यदि चोट लग जाय या कहीं मोच आ जाये तो बेल की पत्तियों को कुचल कर उसका रस निकालें और उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर गरम करें। जब वह पक कर गाढ़ा हो जाय तो उसका गरम-गरम लेप चोट या मोच के स्थान पर चढ़ावें, चोट या मोच ठीक हो जायगा। यदि चोट की जगह घाव हो तो बेलपत्र के रस में रुई का फाया तर करके उस घाव पर रोज २-३ बार रखें, घाव भर जायगा। फाया रखने के साथ-साथ थोड़ा पत्र-रस भी यदि रोगी को पिलाया जाय तो लाभ बहुत जल्द होता है। रस के साथ मधु मिलाया ज़ा सकता है।

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जहरीले कीड़े का दशन - किसी जहरीले कीड़े के काटने से यदि जलन हो तो और वह स्थान सूज जाय तो दंश-स्थान पर बेलपत्रों के रस को बार-बार लगाने से शांति मिल जाती है और सुजन भी मिट जाती है।

चचेक की दाह व बैचेनी - चेचक के रोगी को जब चेचक की वजह से शरीर में अधिक दाह हो तो बेलपत्रों के रस में मिश्री मिलाकर पिलाने से तथा बेलपत्रों का पंखा बनाकर उससे झलने सें शांति मिलती है।

नारू की बीमारी - इस बीमारी में बेलपत्र को जल के योग से पीसकर तीन तोले के लगभग लुगदी बना लें। फिर उसमें ६ माशा कपूर मिलाकर अच्छी तरह घोटें। तत्पश्चात उसकी टिकिया बनाकर और नारु पर रखकर कपड़े की पट्टी बांध दें। रोज ताजी टिकिया बनाकर बांधे। ऐसा करने से ३-४ दिन में ही नारु की बीमारी ठीक हो जायगी।

नेत्र-रोग - बेल की ताज़ी हरी पत्तियों को पीसकर और थोड़ा गरम कर उसकी पुल्टिस आँखों पर बांधने से नेत्र की पीड़ा, सुजन, कीचड़ अधिक निकलना तथा लाली आदि सब दूर हो जाती है। बेल-पत्र के रस की १-२ बूंदें भी आखों में डालते राहणा चाहिए।

रतौंधी - रतौंधी में १ तोला ताजे बेलपत्र को ७ दाने कालीमिर्च के साथ महीन पीस कर और १० तोला जल में मिलाकार छान लें। फिर उसमें ढाई तोला खांड या मिश्री मिलावें और प्रात: व सायं पीवें। साथ ही बेलपत्रों को कुचल कर रात भर पानी में भिगों रखें, सुबह उस पानी से नेत्रों को धोयें। ऐसा करने से रतौंधी ततो दूर हो ही जायेगी, नेत्रों की ज्योति भी बढेगी।

क्षय-रोग - बेल-वृक्ष की जड़ ढाई तोला, अडूसा पत्र डेढ़ तोला, नागफनी तथा थूहड़ के पके फल २ तोला, सौंठ, कालीमिर्च व पिपली २-२ माशा। सबको कूटकर और आध सेर जल में डालकर काढ़ा पकावें। जब आठवाँ भाग बच रहे तो उसे सुबह शाम शुद्ध मधु मिलाकर सेवन करें, क्षय-रोग में शीघ्र लाभ होगा। इस योग से दमा रोग भी मिट जाता है।

पसली चलना - बालकों में यह रोग व्यापक रूप से पाया जाता है। इस रोग में बेल-वृक्ष की जड़ की छाल, नागरमोथा, पाठा, त्रिफला तथा छोटी व बड़ी कटेरी के काढ़े में पुराना गुड़ मिलाकर पिलावें, व पेट की सिकाई भी करनी चाहिए।

बहरापन - एक या दो अंगुल लम्बी तथा साधारण मोटी बेल की लकड़ी लेकर उस पर तिल के तेल से तर किया हुआ रेशमी वस्त्र लपेटें, तत्पश्चात उसके नीचे का सिरा जला दें। उससे जो तेल टपके उसे चीनी मिट्टी के बर्तन में एकत्र करें, फिर शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें और रोज २-३ बुँदे यह तेल कान में टपकायें तो कुछ ही दिनों में बहरापन रोग दूर हो जाता है। इससे कान का दर्द में भी लाभ मिलता है।

पुराना सिरदर्द - बेल की १६ ताज़ी और हरी पत्तियों को लाकर उन्हें जल के योग से सिल पर खूब महीन पीस लें और पानी मिलाकर १ गिलास घोल बना लें। फिर उसमें बिना कुछ मिलाये सुबह खाली पेट पी जायें तो कुछ ही दिनों में पुराने से पुराना सिरदर्द से छुटकारा मिल जाता है।

मुहँ के छाले - बेल के गूदे को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करने से मुहँ के छाले नष्ट हो जाते है।

रक्त विकार - बेल-वृक्ष की जड़ ढाई तोला और गोखरू १ तोला, दोनों को कूटकर १० तोले उबलते हुये गरम जल में भिगो देंवें, ठंडा हो जाने पर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर प्रात: व सायं पिलावें। ऐसा करने से अशुद्ध रक्त शुद्ध हो जाता है जिससें अशुद्ध रक्त के कारण जो रोग उत्पन्न होते है उन सभी रोगों में लाभ होता है।

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