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लहसुन और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 7

लहसुन और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 7

लहसुन और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 7 (Garlic and its Medicinal Uses Part-7)

वायु फुल्लता या आफरा (Flatulence) - इस रोग के शमन के लिए रोगी को रोज भोजन के साथ दो-तीन कलियाँ लहसुन की कच्ची ही खानी चाहिए। ये कलियाँ अदरक के रस के साथ यदि खाई जायें तो लाभ जल्दी होता है।

हर प्रकार का वात रोग (all types of arthritis) - रोग भोजन के आरंभ में लहसुन की चटनी में तिल का तेल और नमक अंदाज से मिलाकर खाने से सब प्रकार के वात रोग दूर हो जाते है।

गुल्म-रोग (Tumour) - लहसुन की चटनी में चटनी में तिल का तेल मिलाकर सेवन करने से गुल्म-रोग ठीक जाता है।

तमक श्वास (Heavy Breathing) - हरे ताजे भरी-भारी - लहसुन लेकर आधे सेर या दस छटांग पानी में उबालें। जब लहसुन खूब नरम हो जाय तो पानी को छान लें। इस पानी में उतना ही सिरका और पाव भर देशी शक्कर मिलाकर शरबत बना लें। इस शरबत में उबले हुए लहसुनों को डालकर ठंडा कर लें, फिर बोतलों में भर कर रख दें और रोज सुबह उठते ही बोतल में से एक टुकड़ा लहसुन निकालकर खा लें और उसके बाद एक चम्मच शरबत भी पी लें तो तमक श्वास धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।

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सिर के बालों का झड़ना (Hair loss from head) - सरसों के एक छटांग तेल में लहसुन की एक पूरी गांठ छीलकर डाल दें और धीमी आंच पार पकाएं। जब लहसुन तेल में जल कर काला पड़ जाय तब उन्हें निकालकर फेंक दें और तेल को बोतल में सुरक्षित रख लें। रोज इस तेल से सिर के बालों की जड़ों में मालिश करें, कुछ ही दिनों में सिर के बालों का झड़ना रुक जायगा। अथवा सरसों के तेल में लहसुन की छिली हुई कलियाँ - दिन यों ही रख छोड़ने से भी उस तेल में लहसुन के गुण जाते है। इस तेल को ऊपर वर्णित पकाये हुए लहसुन के तेल की भांति ही इस्तेमाल करके लाभ उठाया जा सकता है।

वातिक सिर दर्द (Vatik headache) - लहसुन की कलियों को नमक के साथ पीस कार भोजन के साथ सेवन करने से वातिक सिर दर्द में लाभ होता है।

पुराना पक्षाघात (Old Paralysis) - पुराने पक्षाघात की लहसुन चिकित्सा के लिए लहसुन, ताजा, बड़ी गांठ वाला, अर्थात जिसकी गांठे रस से भरपूर हों और मोटी हों लेना चाहिए। यदि एक पोते वाला महाराष्ट्रीय लहसुन मिल सके तो अति उत्तम। या लहसुन की - कलियाँ जिनका वजन से माशा तक ही हो, लेकर उनका छिल्का उतार दें और गूदे को खरल में डालकर बारीक चटनी की तरह पीस लें। फिर गाय का थोड़ा दूध लेकर गरम करें। दो तोला दूध अलग निकाल कर उसमें मधु मिलावें। जब दूध थोड़ा ठंडा हो जाय तो उसमें पिसा हुआ लहसुन मिला दें और चम्मच से हिलाकर पि जायं और उपर से इच्छानुसार दूध पीवें। ध्यान रखें खौलते दूध में लहसुन कभी मिलावें अन्थया उसके औषधि गुण नष्ट हो जायेंगे। दिन में दो बार सुबह-शाम उपर्युक्त प्रयोग करें। तीन दिन बाद मात्रा आधा तोला तक कर दें। एक सप्ताह बाद पौने तोले से एक तोला कर दें। आगे इसी प्रकार बढ़ा-बढ़ाकर ढाई तोला तक मात्रा कर दें। फिर इसी प्रकार धीरे-धीरे मात्रा घटाते जाएँ। ऐसा करने से पक्षाघात का दुष्प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाएगा। जिस पक्षाघात में उच्च रक्तचाप भी साथ-साथ हो उसमें यह प्रयोग रामबाण सिद्ध होता है। इस पयोग का प्रयोग मास से मास तक किया जाना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले रोगी को औषधि थोड़ी कम मात्रा में लेनी चाहिए। पुराने पक्षाघात में इससे बड़ा लाभ होता है।

नया पक्षाघात (New Paralysis) - एक पोतेवाला लहसुन छील कर और उसे सिल कर पीस कर उसमें शहद मिलाकर चाटें और ऊपर हल्का गरम दूध पीवें। दुसरे दिन दो लह्सुनो को वैसा ही प्रयोग करें, तीसरे दिन तीन का, चौथे दिन का इसी प्रकार ११ लह्सुनों तक ले जायें। अब बाहरवें दिन से - लहसुन घटाना शुरू करें और अंत में बंद कार दें। एक सप्ताह बाद फिर इस प्रयोग को दोहरावें। ऐसा करने से नया पक्षाघात ठीक हो जायेगा और शरीर शक्तिशाली बन जाएगा।

बुढ़ापे का पक्षाघात (paralysis of old age) - इस रोग में रोग की लहसुन चिकित्सा करने के प्रथम दिन डेढ़ माशा लहसुन की चटनी चाटकर पाव भर दूध पीयें। तीसरे दिन पहले माशा चटनी-चाटकर आधा पाव दूध पीयें, फिर माशा और चटनी चाटकर पाव भर दूध पीयें। चौथे दिन तोला चटनी में से पहले माशा चाटें और छ्टांग दूध पीयें, फिर माशा और चाटें और ऊपर से आध पाव दूध पीयें अंत में : माशा चटनी चाटकर पाव भर दूध पीयें। इस तरह - माशा रोज बढ़ाते बढ़ाते तोले तक ले जायं और दूध की मात्रा भी बढ़ा-बढ़ाकर पीतें जायं। फिर इसी प्रकार धीरे-धीरे घटाना शुरू कर दें। इससें बुढापे का पक्षघात ही नहीं आपितु मुहँ का लकवा, अर्धांग वात तथा गठिया आदी सब ठीक हो जाते है।

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