लहसुन और उसके चिकित्सय उपयोग भाग - 1 (Garlic and its Medicinal Uses Part-1)
लहसुन वायु और सुजन को दूर करता है और ताकत पैदा करता है, पेट की तरलता को सुखाता है । पेशाब और स्त्रियों के मासिक धर्म को खोलता व जारी करता है । आवाज और हलक को साफ़ करता है । सांस, दमा एयर पुट्ठों की बिमारियों में लाभकारी है । लकवा में गुणकारी है और स्वास्थ्य को स्थिर रखता है । लहसुन अत्यंत शक्तिशाली एंटीसेप्टिक है । पायरिया, फोड़े, चर्मरोग आदी में यह बड़ा प्रभावकारी है । जहाँ कहीं सुजन हो लहसुन उसे नष्ट कर देता है । लहसुन के प्रयोग द्वारा आप प्रकृति की उपचार क्षमता को बलप्रदान करते है ।
फेफड़ों का क्षय - लहसुन के रस को रुई पर छिड़क कर नाक पर बांध देना चाहिए ताकि प्रत्येक अंदर जाने वाली साँस के साथ मिलकर फेंफड़ों तक पहुँच जाय । रोगों के आरंभ में इस प्रयोग को लगातार करना चाहिए और लहसुन के रस के सूख जाने पर उस पर बार-बार रस डालकर उसे तर रखना चाहिए । कुछ सप्ताह बाद इस प्रयोग को रोज केवल ३-४ घंटे करना काफी होता है । लहसुन के ताजे रस की एक ड्राप मात्रा रोगी को दिन में ३ बार शहद में मिलाकर चटाना भी चाहिए ।
आँतों का क्षय (Intestinal Atresia) - आँतों के क्षय में लहसुन का रस ६ माशा से लेकर १ तोला तक पानी के साथ पिलाने से बड़ा लाभ मिलता है ।
नाक की खुश्की व पपड़ी (Dry Nose) - नाक के अंदर पपड़ी पड़ने, खुश्की होने या मांस वृद्धि में लहसुन के २० बूंद रस को डेढ़ छटांग पानी में मिलाकर नाक में चढाने से अवश्य लाभ होता है । इस मिश्रण में थोड़ा सा नींबू का रस भी मिलाकर यदि उससे जलनेति की जाये तो लाभ और अधिक होता है ।
गले की बीमारी ( Throat Disease) - गला बैठना, खरखराहट आदि में लहसुन के रस को पानी में मिलाकर गरारा करने से लाभ होता है । पानी को थोड़ा गारा कर लेना चाहिए ।
दाद, कुष्ठ और चर्म रोग (Skin Diseases) - लहसुन का रस चर्म रोगों पर लगाने से उपकार होता है ।
रक्तचाप बढने के कारण लकवा (Paralysis) - हरे डंठल के साथ पूरी लहसुन की गांठ का रस निकालकर और पानी में मिलाकर पिलाने से रक्तचाप के बढ़ने के कारण लकवा होने में लाभकारी है । इस प्रयोग से बढे हुए रक्तचाप में भी लाभ होता है ।
डिंप्थीरिया (Diphtheria) - डिंप्थीरिया एक घातक रोग है, पर यह लहसुन के प्रयोग से अवश्य ठीक हो जाता है । इसके लिए लहसुन की एक कली को मुहँ में डालकर उसे कुतर-कुतर कर बहुत देर तक चूसते रहना चाहिए । फिर उन छोटे-छोटे कुतरे टुकड़ों को निगल जाना चाहिए । इसी प्रकार और कलियों को बारी बारी से कुतरना और कुतरे टुकड़ों को निगलना चाहिए । इस विधि से ३-४ घंटो में एक या डेढ़ औंस वजन की कलियों को खाकर समाप्त कर देना चाहिए । ऐसा करने से डिंप्थीरिया रोग दूर हो जाता है ।
निमोनिया (Pneumoniae) - निमोनिया, फेफड़ों का एक भयंकर रोग है । चाहे एक फेफड़ें का निमोनिया हो या दोनों फेफड़ों का, इस रोग में लहसुन का रस अपना कमाल अवश्य दिखाता है । लहसुन के ४ बूंद स्वरस में अंदाज से साफ़ जल मिलाकर रोगी को हर चार घंटे के अंतर से पिलाइये । निमोनिया में उसे आशातीत लाभ होगा ।
ह्रदय रोग (Heart Disease) - लगभग सभी प्रकार के ह्रदय रोगों में लहसुन की छिली कलियों को डालकर पकाया हुआ गाय का दूध बड़ा उपकारी सिद्ध होता है । इस दूध का कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए ।
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